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सर्जना शर्मा
त्वं
परा प्रकृति: साक्षाद् ब्रह्मण: परमात्मन:।
त्वतो
जातं जगत्सर्वं त्वं जगज्जननी शिवे। ।
- हे शिवे तुम परब्रह्म परमात्मा की पराशक्ति हो. तुम्हीं से सारे जगत की
उत्पत्ति हुई है तुम्हीं विश्व की जननी हो।
प्रकृति की जितनी भी शक्तियां हैं वे सब ईश्वरीय शक्ति की ही अभिव्यक्तियां है
. इसीलिए मूलशक्ति को सर्व सामर्थ्य युक्त कहा गया है। पूरी दुनिया में जहां कहीं
भी शक्ति का स्फुरण दिखता है वहां सनातन प्रकृति अथवा जगदंबा की ही सत्ता है। ये
शक्ति मां की तरह सृष्टि को विकास से पहले अपनी कोख में रखती है उसकी वृद्धि और
पोषण करती है उसका प्रसार करती है। और फिर उत्पन्न हो जाने पर उसकी रक्षा करती है।
यही शक्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश की जननी है। शक्ति विहीन होने पर ब्रह्मा, विष्णु
और महेश भी कुछ नहीं कर पाते।
प्रकृति यानि 'प्र' जिसका अर्थ है प्रकृष्ट और 'कृति' का अर्थ है सृष्टि। सृष्टि
करने में जो परम प्रवीण है उसे देवी प्रकृति कहते हैं। प्रकृति तमो. रजो और सतो
गुण से संपन्न है। सृष्टि के आदि में जो देवी विराजमान रहती है उसे प्रकृति कहते
हैं। और सृष्टि के अवसर पर जो परब्रह्म परमात्मा स्वयं दो रूपों में प्रकट हुए
प्रकृति ओर पुरूष दायां अंग पुरूष और बायां अंग प्रकृति यानि शक्ति। यही प्रकृति
बह्म स्वरूपा. नित्या और सनातनी है। भगवती दुर्गा शिव स्वरूपा हैं आदि देव महादेव
की पत्नी हैं। ब्रह्मादि देवता ऋषि मुनि इनकी आराधना करते हैं। यश. मंगल. सुख मोक्ष औऱ हर्ष प्रदान करती हैं औऱ
दु:ख शोक हरती हैं। देवों के देव महादेव की अपार शक्ति हैं उन्हें परम शक्तिशाली
बनाए रखती हैं। ये अनंता है समय पड़ने पर अनेक रूपों में जन्म लेती हैं दुष्टों का
संहार करती हैं।
देवी प्रकृति का दूसरा स्वरूप भगवती लक्ष्मी हैं। परम प्रभु श्री हरि की शक्ति
हैं। संपूर्ण जगत की सारी संपत्तियां उनके स्वरूप हैं औऱ संपत्ति की अधिष्ठात्री
देवी माना गया है। ये परम सुंदर. शांत अति उत्तम स्वभाव वाली और समस्त मंगलों की प्रतिमा
हैं। अपने पति श्री हरि से वो अति प्रेम करती हैं औऱ श्री हरि भी उनसे बहुत प्रेम
करते हैं। इसलिए भगवान विष्णु के अनेक नामों में से कुछ नाम हैं श्रीधर, श्री
निवासन आदि। महालक्ष्मी के रूप में देवी का ये परम स्वरूप वैकुण्ठ में श्री हरि की
सेवा करता है और स्वर्ग में स्वर्गलक्ष्मी, राजाओं के यहां राजलक्ष्मी और
गृहस्थियों के यहां गृहलक्ष्मी के रूप में व्यापारियों के यहां वाणिज्यरूप में
विराजती हैं।
वाणी, विद्या, बुद्धि और ज्ञान
की देवी हैं सरस्वती। मनुष्यों को बुद्धि, कविता, मेधा प्रतिभा और स्मरण शक्ति उन्हीं
की कृपा से प्राप्त होती है। स्वर संगीत औऱ ताल उन्हीं के रूप हैं। सिद्धि, विद्या
उनका स्वरूप हैं। वे व्याख्या और बोध स्वरूपा हैं। शांत तपोमयी देवी सरस्वती श्वेत
वस्त्र धारण करती हैं औऱ हाथ में वीणा पुस्तक लिए रहती हैं।
देवी प्रकृति के इन्हीं तीनों रूपों के पूजन औऱ आराधना का पर्व हैं नवरात्र
यानि नौ रात्रियां। वर्ष में दो बार ऋतुओं के संधिकाल में नवरात्र आते हैं। वासंतिक
नवरात्र और शारदीय नवरात्र। वासंतिक नवरात्र शीत ऋतु औऱ वसंत ऋतु के संधिकाल में
आते हैं इसलिए वासंतिक नवरात्र कहलाते हैं। वासंतिक नवरात्र चैत्र प्रतिपदा से
आरंभ होते हैं और शारदीय नवरात्र वर्षा ऋतु औऱ शरद ऋतु के संधिकाल में आते हैं। इन
नौ दिनों में परम शक्ति के नौ रूपों की आऱाधना की जाती है। त्रेता युग से पहले
केवल वासंतिक नवरात्र होते थे। उस युग में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम को अति बलशाली
लंकापति रावण पर विजय पाने के लिए शक्ति चाहिए थी और हिंदु कैलेंडर के आश्विन
महीने के शुक्ल पक्ष से लेकर नवमी तक उन्होनें आदिशक्ति, जगत जननी मां जगदंबा की
आराधना की। मां भवानी ने ना केवल उन्हें अष्टमी के दिन दर्शन दिए बल्कि लंका पर
विजय पाने के लिए अपार शक्तियां भी दीं। लंकापति रावण भी आदि देव महांदेव का परम
भक्त था। उसके पास भी भगवान शिव की दी अनेक सिद्धियां और बल था। लेकिन आदिशक्ति
की कृपा से ही भगवान राम रावण का वध कर सके और लंका पर विजय पा सके। सनातनम परंपरा
के अनुसार आश्विन महीना, चातुर्मास का तीसरा महीना है। चातुर्मास में सभी देवी
देवता शयन करते हैं। भगवान श्री राम को देवी मां का अकालबोधन करना पड़ा। अकालबोधन
यानि असमय पुकारना औऱ उनकी पुकार पर मां आयीं भी। पश्चिम बंगाल में आज भी दुर्गा
पूजा के समय अकालबोधन एक महत्वपूर्ण पूजा विधि है। इसके बिना दुर्गा पूजा संभव
नहीं है।
नवरात्र नौ दिन का पर्व है शाक्त परंपरा (शक्ति की उपासना) में नवरात्र को तीन
भागों में बांटा गया है। पहले तीन नवरात्र में मां भगवती के महाकाली रूप का पूजन। दुर्गा
का भक्त अपने तमो गुण दूर करता है। बीच के तीन चौथे. पांचवें और छठे नवरात्र को
मां के महालक्ष्मी रूप का पूजन कर अपनी भक्ति से रजोगुण प्राप्त करता है। महालक्ष्मी
दुनिया के सभी सुख. सुविधाएं ऐश्वर्य और संपदाएं देती हैं। अंतिम तीन नवरात्र
सांतवां आठवां और नौवां महासरस्वती का पूजन होता है। तमोगुण दूर करके रोज गुण
प्राप्त करके सतो गुण की ओर बढता है और ज्ञान का प्राप्ति करता है।
भले ही नवरात्र महाकाली. महालक्ष्मी और महासरस्वती के तीन रूपों की आराधना है
लेकिन आम देवी भक्त इन नौ दिनों में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं –
क्रम से शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा,
स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और नवें व अंतिम दिन सिद्धिदात्री
स्वरूप की पूजा की जाती है।
नवरात्र तन और मन के शोधन का पर्व है। जब हम एक ऋतु से दूसरी ऋतु में प्रवेश
करते हैं तो हमें अपनी काया के शोधन की आवश्यकता होती है। हर ऋतु का खानपान अलग है।
इसलिए अगली ऋतु के लिए अपने शरीर को तैयार करने से पहले ऋतुओं के संधिकाल में शरीर
को डिटॉक्सीफाई करना ज़रूरी है। इसीलिए नवरात्र में आम दिन खाए जाने वाले भोजन दाल
रोटी सब्जी चावल का त्याग किया जाता है और फलाहार लिया जाता है। नवरात्र शरीर में नव
उर्जा का संचार करते हैं और नवरात्र में की गयी साधना मन और आत्मा का शोधन करती
हैं। तन और मन स्वस्थ प्रसन्न रहने पर ही व्यक्ति अपना हर काम ठीक से कर सकता है
और दुनिया के समस्त सुखों को भोगता हुआ मोक्ष की राह पर चल सकता है। इसलिए नवरात्र
पर्व के मर्म को समझते हुए परम शक्तिशाली नवरात्र पर्व में अपने तन मन का शोधन
करें। ज्ञान. भक्ति और तप की राह पर चलते हुए अपने जीवन को हर दृष्टि से सफल बनाने
का प्रयास करें
नवरात्र
में देवी को कौन कौन से भोग लगाएं :
श्रीमद् देवी भागवत पुराण के आठवें स्कंद में भगवान नारायण ने स्वयं नारद जी
को बताया है कि नवरात्र में आदि मां भवानी को कौन सा भोग लगाने से क्या फल मिलता
है।
नवरात्र भोग फल
पहला गाय का
घी रोग
नाश
दूसरा चीनी दीर्घ
आयु
तीसरा दूध संपूर्ण
दुखों से मुक्ति
चौथा मालपुआ विघ्न
नाश
पांचवा केला बुद्धि
का विकास
छठा शहद सुंदर रूप
की प्राप्ति
सातवां गुड़ शोकमुक्त
आठवां नारियल संताप
नाश
नौवां धान का
लावा लोक
परलोक में अपार सुख

सर्जना
शर्मा
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Shardiya
Navratre - Festival of Shakti – Sarjana
Sharma