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पैरों की जादूगर अर्थात सॉकर क्वीन आफ ‘रानी’ - संजीव शर्मा
7/18/2014 10:28:55 AM
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- संजीव शर्मा
विश्व कप फुटबाल का जुनून देश भर में साफ नज़र आ रहा है तो फिर सुदूर पूर्वोत्तर
में असम इससे अछूता कैसे रह सकता है। फुटबाल का खुमार पूरे असम में समान रूप से
छाया हुआ है। यहां बच्चों से लेकर बड़े तक फुटबाल के रंग में रंग गए हैं। असल बात
यह है कि लड़कियां भी इस मामले में पीछे नहीं है। अब तो वे कई लोगों की प्रेरणा का
स्त्रोत बन गयी हैं।
गुवाहाटी के पास रानी क्षेत्र की लड़कियां अपनी लगन, निष्ठा और कुछ कर दिखाने की ललक के फलस्वरूप इन दिनों राष्ट्रीय स्तर पर
सुर्खियों में हैं। अत्यधिक गरीब किसान और मजदूर परिवारों की इन लड़कियों के लिए फुटबाल
सिर्फ एक खेल न होकर अपनी ज़लालत भरी ज़िन्दगी से बाहर निकलने का एक माध्यम भी है।
लड़कियों को उम्मीद है कि इस खेल से वे समाज में सम्मान हासिल कर सकती हैं और फिर इसके
जरिए अपने बेहतर भविष्य की नींव रख सकती हैं। गर्मी, उमस और बरसात के बाद
भी वे फुटबाल खेलने के लिए अपने गाँव से प्रतिदिन कई किलोमीटर पैदल चलकर गुवाहाटी
आती हैं। जो इस खेल के प्रति उनके समर्पण, ललक और जिजीविषा को
साबित करता है। खास बात यह है कि वे स्कूल की पढाई और घर के काम-काज के बाद भी फुटबाल
के लिए समय निकाल लेती हैं। उनके गाँव की ख़राब स्थिति का अंदाज़ा इस बात से लगाया
जा सकता है कि वहां आज तक बिजली नहीं पहुंची लेकिन कहते हैं न ‘जहां चाह-वहां राह; इन लड़कियों ने इसे अपनी नई
जिन्दगी का मूलमंत्र बना लिया और अपने गाँव से रोज गुवाहाटी आकर इस खेल के हुनर
सीखने शुरू किए।उनके जोश को देखकर जाने-माने कोच हेम दास आगे आए और उन्होंने इन
लड़कियों को उनकी मंजिल तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया।फुटबाल के प्रति हेम दास का
जुनून भी ऐसा है कि वे ‘घर फूंककर तमाशा देखने’ जैसे मुहावरे को चरितार्थ करते हैं। वे आमतौर पर अपनी जेब से पैसा खर्च कर इन
लड़कियों को प्रशिक्षित करते हैं। यही नहीं, वे गाँव जाकर
लड़कियों के परिजनों को समझाने में भी पीछे नहीं रहते ताकि इन ‘सॉकर क्वीन’ को अपने पैरों का जादू दिखने में कोई बाधा नहीं
आए। इसी का नतीजा है फिल्म ‘सॉकर क्वीन आफ रानी’। इस फिल्म के जरिए गुरु-शिष्याओं की मिली-जुली मेहनत को दर्शाया गया है जो
छोटे परदे के माध्यम से जमकर सराहना बटोर रही है। दरअसल इन लड़कियों के खेल पर
केन्द्रित 26 मिनट की इस फिल्म को राज्यसभा टीवी ने आधुनिक
भारत की विकासात्मक और प्रेरणात्मक कहानियां श्रृंखला के तहत प्रसारित किया। फिल्म
के प्रसारण के बाद तो ये लड़कियां वास्तव में सॉकर क्वीन बन गयी हैं और उन्हें
सरकारी और निजी क्षेत्रों से आर्थिक मदद की उम्मीद भी जगी है। वैसे भी यह फिल्म
पूर्वोत्तर भारत में फुटबाल की लोकप्रियता को भी प्रदर्शित करती है क्योंकि यहां
फुटबाल शौक भी है, जोश भी और पेशा भी।
संजीव शर्मा
(आकाशवाणी सिलचर, असम में संवाददाता)
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