- अरुण कुमार बंछोर (रायपुर)
नंदन वन का नाम बहुत सुना था अब देखा भी लिया। यहां नाम बड़े दर्शन छोटे वाली
कहावत पूरी तरह से चरितार्थ होती है।
नंदन वन एक मिनी जू है जो रायपुर के वन विभाग (फॉरेस्ट डिपार्टमेंट) की ओर से विकसित
किया गया है। यह खारुन नदी के किनारे
अटारी गांव में स्थित है। इसकी स्थापना 1977 में रायपुर वनमंडल द्वारा
हथबंद में कराई गई। यह चिडिय़ाघर 48 एकड़ में फैला हुआ है। यहां 200 से ज्यादा
वन्य प्राणियों और पक्षियों को रखा गया है। कुछ महीने पहले महासमुंद जिले में एक
नरभक्षी चीते को पकडऩे के बाद उसे ग्रामीणों से बचाने के लिए रायपुर के नंदनवन चिडिय़ाघर भेज दिया गया। इन सभी जानवरो का भगवान ही मालिक है। इनकी सेहत पर
ध्यान देने वाला कोई नहीं है। प्यास बुझाने के लिए गंदा पानी है। खाने के नाम पर
औसत से कम खाना दिया जाता है। हो सकता है
इनके अच्छे दिन आयें पर अभी तो इन जानवरो के साथ जुल्म ही हो रहा है। नया रायपुर
में जंगल सफारी का निर्माण किया जा रहा है। हालांकि इसे अभी काफी समय लगेगा लेकिन
जंगल सफारी में रखे जाने वाले हिंसक वन्य प्राणियों को अभी नंदन
वन में रखकर छत्तीसगढ़ के मौसम के अनुरूप उन्हें ढाला जा रहा है। इस ओर अफसरों का
ध्यान भी नहीं है जिस कारण वन्य प्राणियों की हालत खराब है। यहां पर बड़ी संख्या में हिरण कोटरी चौसिंघा आदि वन्य प्राणियों को खुले में रखा गया है।

बंदरों के पास तो
बंदरों को एक बड़े पिंजरे में रखा
गया है। आप जाएं तो बंदर आपका मनोरंजन करते नजऱ आएंगे। उनकी उछलकूद पर्यटकों को खूब भाती है। पर क्या उन
बंदरों का सही देखभाल हो रहा है। आपको
पिंजरे के पास जाते ही पता चल जाएगा। तेज बदबू के कारण आप एक पल भी वहां खड़ा रहना
पसंद नहीं करेंगे। जऱा सोचो उन बंदरों का क्या हाल होता होगा जो पिंजरे में बंद
है। लगता है सालो से पिंजरों की सफाई ही नहीं हुई है। हमने देखा पका हुआ चावल, चने
और कुछ खाने की सामग्री पिंजरे में बेतरतीब पड़ी हुई
थी और वह खराब भी हो चुकी थी। बदबू वहीं से आ रही
थी और बंदर भूखे होने के कारण उसे ही खा रहा था।

बड़े मजे मे है लकड़बग्घे
लकड़बग्घे को देखकर दिल खुश हो गया। वे बड़े मजे में है। स्वास्थ्य है ओर
तंदरुस्त भी। उनके पिंजरे की साफ़
सफाई भी अच्छे से की गई
थी। उन्हें देखकर नहीं लगता कि उन्हें किसी चीज
की कमी है। पर उनके पिने के लिए जो पानी रखा गया था वह बहुत ही गंदा था। शायद जू के कर्मचारियों को
जानवरों पर तरस नहीं आता। हिरण, कोटरी, चौसिंघा, घडिय़ाल, सिंह, भालू सहित अन्य जानवर अपनी किस्मत पर यहां आंसू बहाने के अलावा और कुछ नहीं
कर सकते। सबकी हालत एक जैसी है। इनके पीने के लिए गड्ढे में जो पानी भरा गया है वह
इतना गंदा है कि बता पाना मुश्किल है। पानी में कचरे का ढेर है और ऊपर से काई जमी हुई है। भला इस पानी को पीने से जानवरो का क्या होगा।?
बूढ़ी नजऱ आती है मात्र चार साल
की सरस्वती
नंदन वन में बाघों की हालत बहुत
ही खराब है। वन विभाग के लोग कहते है कि बाघों को रोजाना 8 किलो मांस खाने को देते
हैं पर बाघों को देखकर तो नहीं लगता की उन्हें पर्याप्त मात्रा में खाना मिलता होगा? मात्र चार साल की उम्र में सरस्वती नामक मादा बाघिन बूढ़ी नजऱ आती है। नर बाघ
की हालत भी कुछ ऐसी ही है। नंदन वन में हम दो घंटे रहे पर नर और मादा बाघ इन दो घंटो में एक ही स्थान पर बैठे रहे। उनके चेहरों पर कमजोरी साफ नजऱ आ आ
रही थी। बाघों के बाड़े में जो पानी है वह भी पीने लायक तो नहीं है। पानी एकदम
गंदा और काई से ढंका हुआ था। अगर पानी की यही व्यवस्था रही तो इन बाघों का भगवान
ही मालिक है।

कुछ अच्छी बातें
मोर, शुतुरमुर्ग, तोते सहित अन्य पक्षियों की चहचहाट से नंदन वन में रौनक थी। उनका बड़ा ही अच्छा ख्याल रखा जाता है। पर्यटक
पक्षियों के पास ही ज्यादा समय बिताते है। रंग बिरंगे तोतों से दर्शक बाते करते नजऱ आते है। नंदन वन में जानवरों को गर्मी से बचाने के लिए स्प्रिंकल्स
(फव्वारे) लगाए गए हैं। नंदन वन
प्रबंधन ऐसे स्प्रिंकल्स सभी जानवरों के बाड़े में लगाने की तैयारी कर रहा है। इसका प्रस्ताव विभाग को भेजा गया है।
अधिकारियों ने बताया कि आम तौर पर
गर्मी में जानवर धूप की तपिश से बीमार पड़ जाते थे, लेकिन अब उन्हें राहत मिलेगी। नंदन वन में दोनों नर और मादा टाइगर, एक लॉयन और हिरणों के बाड़े में नल लगाये फाये हैं। इसमें स्प्रिंकल्स लगाए गए हैं।
इसके अलावा तेंदुआ, कुछ चुनिंदा पक्षियों और
भालू के पिंजरे में भी ऐसे ही
स्प्रिंकल्स लगाने की तैयारी है।

अरुण कुमार बंछोर
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All is not well in Nandan
van - Arun Kumar
Banchhor